Thursday, May 25, 2017

आज फिर उन्हीं पुराने रास्तों पे कदम जब मैंने रखा।

आज फिर उन्हीं पुराने रास्तों पर कदम रखा तो,
छूटी वो मुस्कान मिली, मुस्कुराकर मुझसे पूछा कि कैसे आना हुआ ?
भटका हुआ हूँ अपने रास्तों में , भटकते हुए जब रोना आया तो बस तेरी याद आ गयी।
अरे आज ये सुनसान क्यों है?
मुस्कान मुस्कुराते हुए बोली,
बाहर कहाँ अपना सुकून ढूंढता फिरता है तू,
तेरी मुस्कान तो यहीं रह गयी थी छूट,
ख़ुश हूँ कि तुझे मेरी याद तो आयी।
देख तेरी तरह ही तेरे मित्रों के मुस्कान भी यहीं पड़े हुए हैं।
आज मैं अपनी मुस्कान को देख और आपने मित्रों के मुस्कान को देख फिर से मुस्कान लाऊंगा।
ये वाली मुस्कान बहुत ही अनमोल है, इसलिए इसे यहीं छोड़ जाता हूँ।
फ़िर रोते हुए जब मैं भटक कर आऊँ तो मुझमें फिर से मुस्कान भर देना। ☺
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1 comment:

Ankur Shukla said...

वाह मुस्कुराइए की आप लखनऊ के हैं।☺👌