Sunday, November 26, 2017

दिल्ली में पैसे ऐंठने के तरीके।

 हेल्लो मेरे इंटरनेट के लोग, कैसे हो? काफी दिनों बाद आपसे मुख़ातिब हो रहा हूँ। दरसल, आलस्य ने हमें घेर रखा है। हमारी कल्पना को बाँध रखा है। इसी सिलसिले में न हम हम रह पाये और आप से मुख़ातिब न हो पाये। मेरे द्वारा लिखे गये इन सारी चीजों का कोई पाठक होगा तो मेरे लिये उससे खुशी की बात और क्या हो सकती है।
अब आते हैं सीधे मुद्दे पर।

तो दिल्ली, देश के दिल में मेरे द्वारा अतिक्रमण किये हुये चार साल हो चुके हैं। और इसके odd even वाले हवा में साँस लेते हुये अभी भी जिंदा हूँ। चार साल के तज़ुर्बे के बावजूद अभी भी मैं कुछ लोगों द्वारा मामू बना दिया जाता हूँ। तो आज आपको बताऊंगा कि दिल्ली में मैं किस किस तरीकों से लूटा जा चुका हूँ। 

आप दिल्ली में हो और अगर कोई अनजान व्यक्ति / मोहतरमा आपको excuse me कह के बुलाये तो बहरे बन जाना। और ज्यादा आन पड़े तो अंधे भी। 

1- दिल्ली के टसनी भिखारी लोग: तो मैं बता दूँ कि दिल्ली के भिखारियों से कभी पंगा मत लेना। ये जुबां से झूठी दुआ ही नहीं बल्कि आपको चैलेंज करते हुये भीख मांगते हैं। "अगर एक बाप की औलाद हो तो इस गरीब की मदद कर।" "अगर दिल में थोड़ी सी भी लाज़ बची हो तो इस भूखे की मदद कर।" फिलहाल इनके मांग वाजिब हो सकते हैं। ये तो सभी को पता है कि इनका अपना गैंग होता है। ये लोग जहाँ कहीं प्यार में गुटरगूँ कर रहे प्यार के पंछियों को देख लिये या बस यूं ही साथ में कोई मोहतरमा आपके साथ हो तो ये और भी पीछा नहीं छोड़ते। इस काम के लिये बच्चों वाले महकमे को अच्छी सी ट्रेनिंग दी जाती है। फिलहाल ये पैसे लेने वाले लोग हर जगह पाये जाते हैं। 

2:अब बात करते हैं उन लोगों की जो मेट्रो का पता पूछते हैं और फिर आपसे पैसे की गुजारिश भी। मेट्रो स्टेशन पर लुटेरों की भरमार है। मैं आपको एक किस्सा बताता हूँ। एक बार राजीव चौक मेट्रो स्टेशन के atm से मैं पैसे निकाल रहा था। उसी दौरान एक अधेड़ व्यक्ति, दिखने में ठीक ठाक मेरे पीछे आता है। मैंने सोचा ज़नाब को पैसे निकालने होंगे इसलिये atm के दरबार मे आये हुये हैं। तो ज़नाब ने पूछा कि," पैसे निकल रहे हैं?" मैंने कहा," हाँ।" "अच्छा बेटा आपके पास सौ का चेंज होगा?" ज़नाब ने पूछा। मैंने उसे 50-50 के दो कड़क नोट थमा दिये। इस आस में कि 100 का नोट उस पार्टी से आयेगा। लेकिन वो तो सौ का चेंज लिये और मुस्कुराते हुये चल दिये। मैं तो भौंचक्क खड़े के खड़े रह गया। दूसरा वाकया बताता हूँ। मूलचंद मेट्रो पर मैं मंजिल के लिये भागे जा रहा था। तभी एक लड़के ने अचानक रोककर पूछा कि आपके पास कुछ रुपये होंगे? मेरे पास मेट्रो जाने के लिये भी पैसे नहीं हैं। उस समय मैंने उसको 50 रुपये थमा दिये थे शायद। इसी सोच में कि मेरी जापान की यात्रा में इसकी दुआ लगे।

3:अब बात करते हैं भारत के झंडे वाला बैज को आपके छाती पर जबरजस्ती पहनाने वाली आंटी लोगों की. सबसे पहली बात कि इन आंटियों से सावधान रहना. ये आंटियां आपके अस्मत पे हाथ डाल सकती हैं और आप कुछ नहीं कर सकते. एक अपना वाकया बताता हूँ. मेट्रो के आस पास इनको अक्सर पाया जाता है. मैं एक दिन जल्दी में था लेकिन मेट्रो के दरवाज़े पर तैनात एक आंटी ने मेरे छाती को पकड़ने कि नाकाम कोशिश की. मैं स्मार्ट निकला और तुरंत अपने हाथों से उनके हाथों को अपने छाती पर से हटाया और चलते बना. लेकिन उस वाकये से ये बात पता चल गयी कि इनका हाथ कहाँ तक जा सकता है. एक और वाकया आपको बताता हूँ. ये बात तब की है जब मेरा इनसे पहली बार सामना हुआ था. प्रगति मैदान में हर साल अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला लगता है. मैं अपनी मित्र के साथ उस पुस्तक मेला में जा रहा था. प्रगति मैदान मेट्रो से जैसे ही उतरा दो आंटियों ने हमे घेर लिया और भारत के झंडे वाले बैज को हमें पहना दिया. मुझे लगा कि ये अच्छी बात है भारत के झंडे वाला बैज से मेरे अन्दर देशभक्ति वाली आत्मा जाग गयी. हमने बड़ी ही नम्रता के साथ शुक्रिया कहा और आगे जाने के लिये जैसे कदम बढ़ाया आंटी ने बोला, "बेटा कुछ चंदा तो दे दो." मैंने सोचा चलो ठीक है कोई बात नहीं और मैंने 20 रुपये निकाले और थमा दिए आंटी को. "बेटा ये क्या दे रहे हो?" आंटी ने प्रश्न किया. "कम से कम पचास रूपए तो बनते है?" आंटी ने फिर बोला. आज हमारे देश में किसी को अगर इच्छा से कुछ दो भी उसे लेने वाला उसकी कद्र कत्तई नहीं करेगा. उपर से आपसे ही लड़ पड़ेगा. आज कल भिखारी को 2 रूपये  दो तो वो आपसे 2 रुपये का सिक्का लेगा ही नहीं और आपको गाली भी दे देगा. फिलहाल यहाँ तो आंटी थीं. इनसे बहस तो नहीं कर सकते थे. और अचानक आपसे कुछ बोलता है तो कभी कभी तुरंत दिमाग नहीं चलता है. जिनका तुरंत चलता है, मैं उनको दुआ देता हूँ. तो मैंने 50 रूपये थमा दिये आंटी को. लेकिन उस दिन उस झंडे को लगाने से मुझे देशभक्ति की नहीं बल्कि "आंटी ने तो तुझे टोपी पहना दिया" वाली भावना आ रही थी. तो भाई लोग सावधान! 

4:अब बात करते हैं कुछ ऐसे समूह की जो शायद सही भी हो सकती है. लेकिन मेरे साथ ये वाकया दो बार हुआ है इसलिये मेरा इनपर से भी विश्वास उठ गया है. आपको हाल ही में हुये एक घटना के बारे में बताता हूँ. हम चारों मित्र अपने वापसी के रस्ते पर जा रहे थे. तभी एक अधेड़ लगभग 50 के करीब उम्र, वाला व्यक्ति हमसे बोलता है "भाई साहब आपको (******* भाषा) आती है?" मैं रुक गया और मेरे दूसरे दोस्त भी रुक गये. वह व्यक्ति बोला "हम यहाँ काम की तलाश में आये हुए थे. यहाँ आये तो सूबेदार ने हमें धोखा दिया. हमारे पास खाने के लिये पैसे नहीं हैं. मेरे साथ मेरा परिवार भी है. आप अगर मदद कर दोगे तो छोटे नहीं हो जाओगे...." एक समय लगा कि ये बन्दा सही बोल रहा है लेकिन फिर मुझे याद आया कि ऐसी ही हूबहू कहानी मैंने पहले भी सुनी थी और उस समय मैंने 100 रूपए थमा दिये थे. लेकिन इस बार हम लोगों से साफ़ मना दिया. अगर ये सही भी बोल रहे होंगे तो भी उनपर विश्वास कर पाना कठिन था. और ऐसा कतई नहीं होता कि भाई साहेब 10-20 में मान जाते. 

 तो ये थे कुछ वाकये जो मैंने आपसे साझा किया. ये सिर्फ इतना ही नहीं है. राजीव चौक, राम कृष्ण मेट्रो आदि जगहों पर भी "एक्स कियूज मी!" कहकर आपसे पैसे ऐंठने वाली युवतियां मिल जायेंगी. इसके अलावां भी बहुत अलग अलग तरीके के लुटरों से आये दिन आप भी मुख़ातिब होते होंगे.

इनसे बचने के उपाये क्या हो सकते हैं इसके बारे में बात करते हैं.

1: "एक्स कियूज मी!" वाले किसी भी चीज़ को जहाँ तक हो सके ध्यान देकर भी एकदम ध्यान मत देना. ऐसे लोगों के पास भी मत फटकना. 

2: पार्कों, स्टेशनों इत्यादि वाले जगहों पर ख़ास सावधानी बरतें. किसी महिला मित्र के साथ आप हों तो विशेष सावधानी बरतें. ख़ास तौर पर छोटे उस्तादों से. 

3: और तो आप खुद ही स्मार्ट हो लेकिन आपसे स्मार्ट आपके पॉकेट पे नज़र रखने वाले लोग हैं. बच कर रहना और सावधान, चौकन्ना भी.  

 और आखिर में ये कहते हुए मैं इस ब्लॉग को ख़तम करूँगा कि "दिल्ली दिलवालों का शहर है" इसको महसूस अभी तक नहीं किया है लेकिन इस पर विश्वास जरूर है. आप जहाँ रहो वहां की आबो हवा में साँस लेना सीख लो. तभी मज़ा है नहीं तो बस आपको हर चीज़ से शिकायत रहेगी. इस ब्लॉग को लिखने को मकसद दिल्ली शहर को बदनाम करने का कतई नहीं है. मैंने अपने अनुभव को मात्र साझा किया है.  

 और भी कुछ है . मेट्रो पे टिन का डब्बा लिये खड़ा "कैंसर पीड़ितों के लिये" वाला व्यक्ति. मेट्रो पे लाठी के सहारे पेन बेचते हुए "हिलते हुये बूढ़े ज़नाब". सड़क के डिवाइडर पर कुछ नंबर लिखे  हुये लैमिनेटेड कागज को पकड़ के बैठा हुआ "मटमैला अधेड़", "राजीव चौक के कूड़ेदानों से खाने के तलाश करता हुआ शायद "एक स्मैकिया"........

★ "भीख माँगना" "भिक्षा माँगना" "भीख देना" "दान देना": अपने दरवाज़े पर जब कोई भिखारिन "दई दे ए बिचिवा" कर दरवाज़े पर चिल्लाती है तो अन्दर से हम कुण्डी लगाकर शांत हो जाते हैं. या फिर उस भिखारिन को दुत्कारकार भगा देते हैं. पर जब कोई बाबा घंटी बजाते हुए आपके गली में दस्तक देता है तो हम "अनाज, तेल, रूपए आदि को प्लेट में लेकर दरवाज़े पर आ जाते हैं. और अपने दरवाज़े पर उनके दर्शन के लिये इंतज़ार खड़े रहते हैं. यही विडंबना कह लीजिये या फिर हमारा अपना विश्वास. 

Thursday, June 8, 2017

आँखों की काली पुतलियां

तेरी आँखों की काली पुतलियों में हमने खुद को पाया।
तेरी बहती आँसुओं में हमने खुद को पाया।
तेरी हर साँसों में खुद को जीता पाया।
तेरी हर धड़कन में खुद को धड़कता पाया।
तेरी हर मुस्कान में खुद मुस्कुराया।
फिर न जाने कब तुझसे मुहब्बत हो गयी।
तेरी झलक मेरी चाहत बन गयी।
धड़कने तुझसे मिलाने को मेरी तड़प बढ़ गयी।
तेरी झलक दिल की सुकून बन गयी।
तेरे संग की गई बातें मेरी खुशी बन गयी।
तेरी यादें अकेले सफर की हमसफ़र बन गयीं।
फिर अचानक वो दिन आया,
नज़रें वो पुरानी अब कुछ अजनबी सी बनने लगीं।
आँखों की तेरी अश्क़ों में अब खुद का आईना न पाया।
अपना सा लगने वाला कोई
अजनबी बन मुझसे, फिर कभी भी न मिल पाया।
खता कोई हो गयी थी मुझसे शायद कहीं ।
इसी शायद में हमने भी उनके संग बिताये हसीन यादों को अपना हमसफ़र बना लिया है।
वो जहां होंगे खुश ही होंगे, हमने तो उनकी काली पुतलियों में अपना मुस्कुराता आईना निहार लिया है।

Tuesday, June 6, 2017

चिराग और अंधेरा।

उनकी यादों में जलते जलते लोगों ने मुझे चिराग कहना शुरू कर दिया।
अरे हमने भी उसके अंधियारे को खुद का आईना बना लिया।
खुशी हो या गम आईना बस एक भाव बयाँ करता कि तुम नहीं हो अब कहीं नहीं हो।
तेरे सर पर  चिराग ने खुद को जलाकर क्या किया?
बस अंधेरा दिया बस अंधेरा।
उनकी यादों की तपिश, चिराग से भी ज्यादा तपती है।
अब अंधेरे से भी ज्यादा क्या?
रो जाऊं या फिर मुस्कुराऊँ?
अब अंधेरे में हो चला ये मन अंतरिक्ष सा शून्य।.......

फिर कभी मुस्कुरायेंगे, इस कारसाज़ दुनिया को अपने ग़मों को छिपाये फिर से गले लगायेंगे।

Thursday, May 25, 2017

आज फिर उन्हीं पुराने रास्तों पे कदम जब मैंने रखा।

आज फिर उन्हीं पुराने रास्तों पर कदम रखा तो,
छूटी वो मुस्कान मिली, मुस्कुराकर मुझसे पूछा कि कैसे आना हुआ ?
भटका हुआ हूँ अपने रास्तों में , भटकते हुए जब रोना आया तो बस तेरी याद आ गयी।
अरे आज ये सुनसान क्यों है?
मुस्कान मुस्कुराते हुए बोली,
बाहर कहाँ अपना सुकून ढूंढता फिरता है तू,
तेरी मुस्कान तो यहीं रह गयी थी छूट,
ख़ुश हूँ कि तुझे मेरी याद तो आयी।
देख तेरी तरह ही तेरे मित्रों के मुस्कान भी यहीं पड़े हुए हैं।
आज मैं अपनी मुस्कान को देख और आपने मित्रों के मुस्कान को देख फिर से मुस्कान लाऊंगा।
ये वाली मुस्कान बहुत ही अनमोल है, इसलिए इसे यहीं छोड़ जाता हूँ।
फ़िर रोते हुए जब मैं भटक कर आऊँ तो मुझमें फिर से मुस्कान भर देना। ☺
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Wednesday, May 17, 2017

चाँदनी अब ढल सी गयी।

कहाँ अपनी चाँदनी सी, घनी अंधियारी छा सी गयी।
जीवन में भटके इस पथिक को कोई उजियारा नहीं दिख रहा है।
इस घुटन में दम घुटने लगा है अब उसका, क्या करे, क्या करे , क्या करे?

खो दिया इस चमकते सूरज ने अपनी रौशनी को~!

उनका आना था जिन्दगी में मेरे
आशाओं की चमक से उजला दिया मेरे जीवन को;
साथ जीने मरने की कसम खायी फिर हमने
कभी होंगे न जुदा एक दूजे से....
दूरियां चाहें हो सात समुन्दर पार जितने
पर दिल के गहरायिओं से हम करीब रहेंगे
पर...
करवटें लेने लगी तन्हाई की ये बेताबी
बेवफाई के चादर से छुपा दी मैंने अपनी कमजोरी
तन्हाई की आग ने मुझे दोगला सा बनाया
खायी एक दूजे की कसम को तोड़ दिया
मंजिल तक भी न पहुँच पायी हमारा प्यार
बीच रास्ते में हमने उनसे मुँह मोड़ लिया..

अब सोचता हूँ मैं कि अपने प्यार को किससे परखूँ ??

प्यार क्या है?
ये एक विश्वास की एक कमज़ोर कड़ी है जोकि कभी भी टूट सकती है.
संजोकर रखोगे तो सारा जहां तुम्हारा होगा,
गर कहीं से कड़ी टूटी फिर विश्वास के धागे में गाँठ पड़ना लाजिमी है.

अरे हमने भी किया है प्यार किसी से, अभी भी मुहब्बत उनसे जारी है.
फिर भी जानकर हमने उनसे बेवफाई की...
तन्हाई को अपने पास बुलाया...
उससे अपनी आग को बुझाया...
लगा फिर हमे कि अब दाग लगे इस चुनरी का
कोई मोल नही रह गया...
फिर जब अपनी मुहब्बत से अपने कर्मों का मोल बताया
उसने भी बेमोल इस काफूर को अपनी बाहों से छुड़ाया.

अपने किये का ये अंजाम होना ही था
की उनसे जो बेवफाई जो ...
ये अंजाम होना ही था..
पर अब भी उन्ही से मुहब्बत है...
समझ में जो बात नही आई मुझे वो ये है कि....
प्यार का मोल आखिर किससे करूं,,,
शरीर के मेल को क्या प्यार कहते हैं...
ये फिर दिल के मेल को....
या फिर दोनों ही...
या फिर कहीं कुछ और ही है... इस चीज़ के लिये ज़िम्मेवार....

काफूर को जब उसने अपने बाहों से हटाकर फेंक दिया .....
फिर भी इस दिल में अरमान अभी बाकी हैं....
लग रहा ही ऐसे कि ये बेमोल चुनरी उसकी हाथों में कहीं  फँस सी गयी है...

मुहब्बत उनसे जारी रहेगी....
उन्हें पाने के अपने आखिरी मौके को मत गवाना
ए काफूर की बेमोल चूनर...
न जाने कौन कौन तुझे अभी इस्तेमाल करेंगे....
फिर भी हम तो उन्हीं के लिये जियेंगे और उन्हीं के लिये
मरेंगे......

Monday, May 15, 2017

そして、しばらく話せなくなった!

 

 三年前のことなんですけど、僕は自分の太陽に会った。彼女は僕の人生を明らかにした。だが、ずっと一緒にいらえないから、離れた時期も会った。彼女と最後までいけるということを約束した僕は約束をやぶった。「もう、いかん。彼女をだますことができない。」と考えて昨日彼女から別れることになった。でも、今もずっと彼女のことを愛している。たしかに、彼女のことをいつも泣かせたり、困らせたり僕はダメだった。でも、今も一番大好き。2014年3月5日~2017年5月14日の約三年間の付き合いは一生忘れない。ダメだった僕は彼女のこと愛してるけどダメはダメだ。どうしても、恋愛の回復はむりだ、彼女は僕のこと忘れるように、そして、幸せのように。
終わったようだが、まだ、希望があるかな。彼女と。。。。もうダメか。
アディ